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Holy Qurbana

Worship Service

Sunday
January 12, 2025

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Contemporary English Divine Service

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12Jan
Sunday | 08:30

Lectionary Theme: The God of Peace

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    1. आगे आने वाले समय में यह घटना घटेगी यहोवा के मन्दिर का पर्वत सभी पर्वतों में अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हो जायेगा। उसे पहाड़ों के ऊपर उठा दिया जायेगा। दूसरे देशों के लोग इसकी ओर उमड़ पड़ेंगे।

    2. अनेक जातियाँ यहाँ आ कर कहेंगी, “आओ! चलो, यहोवा के पहाड़ के ऊपर चलें। याकूब के परमेश्वर के मन्दिर चलें। फिर परमेश्वर हमको अपनी राह सिखायेगा और फिर हम उसके पथ में बढ़ते चले जायेंगे।” क्यों क्योंकि परमेश्वर की शिक्षाएँ सिय्योन से आयेंगी और यहोवा का वचन यरूशलेम से आयेगा।

    3. परमेश्वर बहुत सी जातियों का न्याय करेगा। परमेश्वर उन सशक्त देशों के फैसले करेगा, जो बहुत—बहुत दूर हैं और फिर वे देश अपनी तलवारें गलाकर और पीटकर हल की फाली में बदल लेंगे। वे देश अपने भालो को पीटकर ऐसे औजारों मे बदल लेंगे, जिनसे पेड़ों की कांट—छाँट हुआ करती है। देश तलवारें उठाकर आपस में नहीं लड़ेंगे। अब वे युद्ध की विद्याएँ और अधिक नहीं सीखेंगे।

    4. किन्तु हर कोई अपने अंगूरों की बेलों तले और अंजीर के पेड़ के नीचे बैठा करेगा। कोई भी व्यक्ति उन्हें डरा नहीं पायेगा! क्यों क्योंकि सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह कहा है!

    5. दूसरे देशों के सभी लोग अपने देवताओं का अनुसरण करते हैं। किन्तु हम अपने परमेश्वर यहोवा के नाम में सदा—सर्वदा जिया करेंगे! वह राज्य जिसे वापस लाना है

    6. होवा कहता है, “यरूशलेम पर प्रहार हुआ और वह लंगड़ा हो गया। यरूशलेम को फेंक दिया गया था। यरूशलेम को हानि पहुँचाई गई और उसको दण्ड दिया। किन्तु मैं उसको फिर अपने पास वापस ले आऊँगा।

    7. “उस ‘ध्वस्त’ नगरी के लोग विशेष वंश होंगे। उस नगर के लोगों को छोड़कर भाग जाने को विवश किया गया था। किन्तु मैं उनको एक सुदृढ़ जाति के रूप में बनाऊँगा।” यहोवा उनका राजा होगा और वह सिय्योन के पहाड़ पर से सदा शासन करेगा।

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    1. क्योंकि हम अपने विश्वास के कारण परमेश्वर के लिए धर्मी हो गये है, सो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमारा परमेश्वर से मेल हो गया है।

    2. उसी के द्वारा विश्वास के कारण उसकी जिस अनुग्रह में हमारी स्थिति है, उस तक हमारी पहुँच हो गयी है। और हम परमेश्वर की महिमा का कोई अंश पाने की आशा का आनन्द लेते हैं।

    3. इतना ही नहीं, हम अपनी विपत्तियों में भी आनन्द लेते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि विपत्ति धीरज को जन्म देती है।

    4. और धीरज से परखा हुआ चरित्र निकलता है। परखा हुआ चरित्र आशा को जन्म देता है।

    5. और आशा हमें निराश नहीं होने देती क्योंकि पवित्र आत्मा के द्वारा, जो हमें दिया गया है, परमेश्वर का प्रेम हमारे हृदय में उँडेल दिया गया है।

    6. क्योंकि हम जब अभी निर्बल ही थे तो उचित समय पर हम भक्तिहीनों के लिए मसीह ने अपना बलिदान दिया।

    7. कुछही लोग किसी मनुष्य के लिए अपना प्राण त्यागने तैयार हो जाते है, चाहे वो भक्त मनुष्य क्यों न हो।

    8. पर परमेश्वर ने हम पर अपना प्रेम दिखाया। जब कि हम तो पापी ही थे, किन्तु यीशु ने हमारे लिये प्राण त्यागे।

    9. क्योंकि अब जब हम उसके लहू के कारण धर्मी हो गये है तो अब उसके द्वारा परमेश्वर के क्रोध से अवश्य ही बचाये जायेंगे।

    10. क्योंकि जब हम उसके बैरी थे उसने अपनी मृत्यु के द्वारा परमेश्वर से हमारा मेलमिलाप कराया तो अब तो जब हमारा मेलमिलाप हो चुका है उसके जीवन से हमारी और कितनी अधिक रक्षा होगी।

    11. इतना ही नहीं है हम अपने प्रभु यीशु के द्वारा परमेश्वर की भक्ति पाकर अब उसमें आनन्द लेते हैं। आदम और यीशु

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    11. इसलिए याद रखो, वे लोग, जो अपने शरीर में मानव हाथों द्वारा किये गये ख़तने के कारण अपने आपको “ख़तना युक्त” बताते हैं, विधर्मी के रूप में जन्मे तुम लोगों को “ख़तना रहित” कहते थे।

    12. उस समय तुम बिना मसीह के थे, तुम इस्राएल की बिरादरी से बाहर थे। परमेश्वर ने अपने भक्तों को जो वचन दिए थे उन पर आधारित वाचा से अनजाने थे। तथा इस संसार में बिना परमेश्वर के निराश जीवन जीते थे।

    13. किन्तु अब तुम्हें, जो कभी परमेश्वर से बहुत दूर थे, मसीह के बलिदान के द्वारा मसीह यीशु में तुम्हारी स्थिति के कारण, परमेश्वर के निकट ले आया गया है।

    14. यहूदी और ग़ैर यहूदी आपस में एक दूसरे से नफ़रत करते थे और अलग हो गये थे। ठीक ऐसे जैसे उन के बीच कोई दीवार खड़ी हो। किन्तु मसीह ने स्वयं अपनी देह का बलिदान देकर नफ़रत की उस दीवार को गिरा दिया।

    15. उसने ऐसा तब किया जब अपने समूचे नियमों और व्यवस्थाओं के विधान को समाप्त कर दिया। उसने ऐसा इसलिए किया कि वह अपने में इन दोनों को ही एक में मिला सकें। और इस प्रकार मिलाप करा दे। क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा उसने उस घृणा का अंत कर दिया। और उन दोनों को परमेश्वर के साथ उस एक देह में मिला दिया।

    16. और क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा बैर भाव का नाश करके एक ही देह में उन दोनों को संयुक्त करके परमेश्वर से फिर मिला दे।

    17. सो आकर उसने तुम्हें, जो परमेश्वर से बहुत दूर थे और जो उसके निकट थे, उन्हें शांति का सुसमाचार सुनाया।

    18. क्योंकि उसी के द्वारा एक ही आत्मा से परम पिता के पास तक हम दोनों की पहुँच हुई।

    19. परिणामस्वरूप अब तुम न अनजान रहे और न ही पराये। बल्कि अब तो तुम संत जनों के स्वदेशी संगी-साथी हो गये हो।

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    1. यीशु ने जब यह बड़ी भीड़ देखी, तो वह एक पहाड़ पर चला गया। वहाँ वह बैठ गया और उसके अनुयायी उसके पास आ गये।

    2. तब यीशु ने उन्हें उपदेश देते हुए कहा:

    3. “धन्य हैं वे जो हृदय से दीन हैं, स्वर्ग का राज्य उनके लिए है।

    4. धन्य हैं वे जो शोक करते हैं, क्योंकि परमेश्वर उन्हें सांत्वना देता है

    5. धन्य हैं वे जो नम्र हैं क्योंकि यह पृथ्वी उन्हीं की है।

    6. धन्य हैं वे जो नीति के प्रति भूखे और प्यासे रहते हैं! क्योंकि परमेश्वर उन्हें संतोष देगा, तृप्ति देगा।

    7. धन्य हैं वे जो दयालु हैं क्योंकि उन पर दया गगन से बरसेगी।

    8. धन्य हैं वे जो हृदय के शुद्ध हैं क्योंकि वे परमेश्वर के दर्शन करेंगे।

    9. धन्य हैं वे जो शान्ति के काम करते हैं। क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलायेंगे।