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Holy Communion Service Malayalam

Worship Service

Sunday
March 31, 2024

Services

10:00

Holy Communion Service Malayalam

Lectionary Theme: Easter; Christ who defeated death and resurrected (End of the Great Lent)

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    12. कुछ जाति और कुछ राज्य तेरी सेवा नहीं करेंगे किन्तु वे जातियाँ और राज्य नष्ट हो जायेंगे।

    13. लबानोन की सभी महावस्तुएं तुझको अर्पित की जायेंगी। लोग तेरे पास देवदार, तालीशपत्र और सरों के पेड़ लायेंगे। यह स्थान मेरे सिहांसन के सामने एक चौकी सा होगा और मैं इसको बहुत मान दूँगा।

    14. वे ही लोग जो पहले तुझको दु:ख दिया करते थे, तेरे सामने झुकेंगे। वे ही लोग जो तुझसे घृणा करते थे, तेरे चरणों में झुक जायेंगे। वे ही लोग तुझको कहेंगे, ‘यहोवा का नगर,’ ‘सिय्योन नगर इस्राएल के पवित्र का है।’

    15. “फिर तुझको अकेला नहीं छोड़ा जायेगा। फिर कभी तुझसे घृणा नहीं होगी। तू फिर से कभी भी उजड़ेगी नहीं। तू महान रहेगी, तू सदा और सर्वदा आनन्दित रहेगी।

    16. तेरी जरूरत की वस्तुएँ तुझको जातियाँ प्रदान करेंगी। यह इतना ही सहज होगा जैसे दूध मुँह बच्चे को माँ का दूध मिलता है। वैसे ही तू शासकों की सम्पत्तियाँ पियेगी। तब तुझको पता चलेगा कि यह मैं यहोवा हूँ जो तेरी रक्षा करता है। तुझको पता चल जायेगा कि वह याकूब का महामहिम तुझको बचाता है।

    17. “फिलहाल तेरे पास ताँबा है परन्तु इसकी जगह मैं तुझको सोना दूँगा। अभी तो तेरे पास लोहा है, पर उसकी जगह तुझे चाँदी दूँगा। तेरी लकड़ी की जगह मैं तुझको ताँबा दूँगा। तेरे पत्थरों की जगह तुझे लोहा दूँगा और तुझे दण्ड देने की जगह मैं तुझे सुख चैन दूँगा। जो लोग अभी तुझको दु:ख देते हैं वे ही लोग तेरे लिये ऐसे काम करेंगे जो तुझे सुख देंगे।

    18. तेरे देश में हिंसा और तेरी सीमाओं में तबाही और बरबादी कभी नहीं सुनाई पड़ेगी। तेरे देश में लोग फिर कभी तेरी वस्तुएँ नहीं चुरायेंगे। तू अपने परकोटों का नाम ‘उद्धार’ रखेगा और तू अपने द्वारों का नाम ‘स्तुति’ रखेगा।

    19. “दिन के समय में तेरे लिये सूर्य का प्रकाश नहीं होगा और रात के समय में चाँद का प्रकाश तेरी रोशनी नहीं होगी। क्यों क्योंकि यहोवा ही सदैव तेरे लिये प्रकाश होगा। तेरा परमेश्वर तेरी महिमा बनेगा।

    20. तेरा ‘सूरज’ फिर कभी भी नहीं छिपेगा। तेरा ‘चाँद’ कभी भी काला नहीं पड़ेगा। क्यों क्योंकि यहोवा का प्रकाश सदा सर्वदा तेरे लिये होगा और तेरा दु:ख का समय समाप्त हो जायेगा।

    21. “तेरे सभी लोग उत्तम बनेंगे। उनको सदा के लिये धरती मिल जायेगी। मैंने उन लोगों को रचा है। वे अद्भुत पौधे मेरे अपने ही हाथों से लगाये हुए हैं।

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    42. सो जब मरे हुए जी उठेंगे तब भी ऐसा ही होगा। वह देह जिसे धरती में दफना कर “बोया” गया है, नाशमान है किन्तु वह देह जिसका पुनरुत्थान हुआ है, अविनाशी है।

    43. वह काया जो धरती में “दफनाई” गयी है, अनादरपूर्ण है किन्तु वह काया जिसका पुनरुत्थान हुआ है, महिमा से मंडित है। वह काया जिसे धरती में “गाड़ा” गया है, दुर्बल है किन्तु वह काया जिसे पुनर्जीवित किया गया है, शक्तिशाली है।

    44. जिस काया को धरती में “दफनाया” गया है, वह प्राकृतिक है किन्तु जिसे पुनर्जीवित किया गया है, वह आध्यात्मिक शरीर है। यदि प्राकृतिक शरीर होते हैं तो आध्यात्मिक शरीरों का भी अस्तित्व है।

    45. शास्त्र कहता है: “पहला मनुष्य (आदम) एक सजीव प्राणी बना।” किन्तु अंतिम आदम (मसीह) जीवनदाता आत्मा बना।

    46. आध्यात्मिक पहले नहीं आता, बल्कि पहले आता है भौतिक और फिर उसके बाद ही आता है आध्यात्मिक।

    47. पहले मनुष्य को धरती की मिट्टी से बनाया गया और दूसरा मनुष्य (मसीह) स्वर्ग से आया।

    48. जैसे उस मनुष्य की रचना मिट्टी से हुई, वैसे ही सभी लोग मिट्टी से ही बने। और उस दिव्य पुरुष के समान अन्य दिव्य पुरुष भी स्वर्गीय हैं।

    49. सो जैसे हम उस मिट्टी से बने का रूप धारण करते हैं, वैसे ही उस स्वर्गिक का रूप भी हम धारण करेंगे।

    50. हे भाइयो, मैं तुम्हें यह बता रहा हूँ: मांस और लहू (हमारे ये पार्थिव शरीर) परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकार नहीं पा सकते। और न ही जो विनाशमान है, वह अविनाशी का उत्तराधिकारी हो सकता है।

    51. सुनो, मैं तुम्हें एक रहस्यपूर्ण सत्य बताता हूँ: हम सभी मरेंगे नहीं, बल्कि हम सब बदल दिये जायेंगे।

    52. जब अंतिम तुरही बजेगी तब पलक झपकते एक क्षण में ही ऐसा हो जायेगा क्योंकि तुरही बजेगी और मरे हुए अमर हो कर जी उठेंगे और हम जो अभी जीवित हैं, बदल दिये जायेंगे।

    53. क्योंकि इस नाशवान देह का अविनाशी चोले को धारण करना आवश्यक है और इस मरणशील काया का अमर चोला धारण कर लेना अनिवार्य है।

    54. सो जब यह नाशमान देह अविनाशी चोले को धारण कर लेगी और वह मरणशील काया अमर चोले को ग्रहण कर लेगी तो शास्त्र का लिखा यह पूरा हो जायेगा: “विजय ने मृत्यु को निगल लिया है।”

    55. “हे मृत्यु तेरी विजय कहाँ है? ओ मृत्यु, तेरा दंश कहाँ है?”

    56. पाप मृत्यु का दंश है और पाप को शक्ति मिलती है व्यवस्था से।

    57. किन्तु परमेश्वर का धन्यवाद है जो प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें विजय दिलाता है।

    58. सो मेरे प्यारे भाइयो, अटल बने डटे रहो। प्रभु के कार्य के प्रति अपने आपको सदा पूरी तरह समर्पित कर दो। क्योंकि तुम तो जानते ही हो कि प्रभु में किया गया तुम्हारा कार्य व्यर्थ नहीं है।

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    20. किन्तु अब वास्तविकता यह है कि मसीह को मरे हुओं में से जिलाया गया है। वह मरे हुओं की फ़सह का पहला फल है।

    21. क्योंकि जब एक मनुष्य के द्वारा मृत्यु आयी तो एक मनुष्य के द्वारा ही मृत्यु से पुनर्जीवित हो उठना भी आया।

    22. क्योंकि ठीक वैसे ही जैसे आदम के कर्मों के कारण हर किसी के लिए मृत्यु आयी, वैसे ही मसीह के द्वारा सब को फिर से जिला उठाया जायेगा

    23. किन्तु हर एक को उसके अपने कर्म के अनुसार सबसे पहले मसीह को, जो फसल का पहला फल है और फिर उसके पुनः आगमन पर उनको, जो मसीह के हैं।

    24. इसके बाद जब मसीह सभी शासकों, अधिकारियों, हर प्रकार की शक्तियों का अंत करके राज्य को परम पिता परमेश्वर के हाथों सौंप देगा, तब प्रलय हो जायेगी।

    25. किन्तु जब तक परमेश्वर मसीह के शत्रुओं को उसके पैरों तले न कर दे तब तक उसका राज्य करते रहना आवश्यक है।

    26. सबसे अंतिम शत्रु के रूप में मृत्यु का नाश किया जायेगा।

    27. क्योंकि “परमेश्वर ने हर किसी को मसीह के चरणों के अधीन रखा है।” अब देखो जब शास्त्र कहता है, “सब कुछ” को उसके अधीन कर दिया गया है। तो जिसने “सब कुछ” को उसके चरणों के अधीन किया है, वह स्वयं इससे अलग रहा है।

    28. और जब सब कुछ मसीह के अधीन कर दिया गया है, तो यहाँ तक कि स्वयं पुत्र को भी उस परमेश्वर के अधीन कर दिया जायेगा जिसने सब कुछ को मसीह के अधीन कर दिया ताकि हर किसी पर पूरी तरह परमेश्वर का शासन हो।

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    1. सप्ताह के पहले दिन सुबह अन्धेरा रहते मरियम मगदलिनी कब्र पर आयी। और उसने देखा कि कब्र से पत्थर हटा हुआ है।

    2. फिर वह दौड़ कर शमौन पतरस और उस दूसरे शिष्य के पास जो (यीशु का प्रिय था) पहुँची। और उनसे बोली, “वे प्रभु को कब्र से निकाल कर ले गये हैं। और हमें नहीं पता कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है।”

    3. फिर पतरस और वह दूसरा शिष्य वहाँ से कब्र को चल पड़े।

    4. वे दोनों साथ-साथ दौड़ रहे थे पर दूसरा शिष्य पतरस से आगे निकल गया और कब्र पर पहले जा पहुँचा।

    5. उसने नीचे झुककर देखा कि वहाँ कफ़न के कपड़े पड़े हैं। किन्तु वह भीतर नहीं गया।

    6. तभी शमौन पतरस भी, जो उसके पीछे आ रहा था, आ पहुँचा। और कब्र के भीतर चला गया। उसने देखा कि वहाँ कफ़न के कपड़े पड़े हैं

    7. और वह कपड़ा जो गाड़ते समय उसके सिर पर था कफ़न के साथ नहीं, बल्कि उससे अलग एक स्थान पर तह करके रखा हुआ है।

    8. फिर दूसरा, शिष्य भी जो कब्र पर पहले पहुँचा था, भीतर गया। उसने देखा और विश्वास किया।

    9. (वे अब भी शास्त्र के इस वचन को नहीं समझे थे कि उसका मरे हुओं में से जी उठना निश्चित है।) मरियम मगदलिनी को यीशु ने दर्शन दिये

    10. फिर वे शिष्य अपने घरों को वापस लौट गये।

    11. मरियम रोती बिलखती कब्र के बाहर खड़ी थी। रोते-बिलखते वह कब्र में अंदर झाँकने के लिये नीचे झुकी।

    12. जहाँ यीशु का शव रखा था वहाँ उसने श्वेत वस्त्र धारण किये, दो स्वर्गदूत, एक सिरहाने और दूसरा पैताने, बैठे देखे।

    13. उन्होंने उससे पूछा, “हे स्त्री, तू क्यों विलाप कर रही है?” उसने उत्तर दिया, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गये हैं और मुझे पता नहीं कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है?”

    14. इतना कह कर वह मुड़ी और उसने देखा कि वहाँ यीशु खड़ा है। यद्यपि वह जान नहीं पायी कि वह यीशु था।

    15. यीशु ने उससे कहा, “हे स्त्री, तू क्यों रो रही है? तू किसे खोज रही है?” यह सोचकर कि वह माली है, उसने उससे कहा, “श्रीमान, यदि कहीं तुमने उसे उठाया है तो मुझे बताओ तुमने उसे कहाँ रखा है? मैं उसे ले जाऊँगी।”

    16. यीशु ने उससे कहा, “मरियम।” वह पीछे मुड़ी और इब्रानी में कहा, “रब्बूनी” (अर्थात् “गुरु।”)

    17. यीशु ने उससे कहा, “मुझे मत छू क्योंकि मैं अभी तक परम पिता के पास ऊपर नहीं गया हूँ। बल्कि मेरे भाईयों के पास जा और उन्हें बता, ‘मैं अपने परम पिता और तुम्हारे परम पिता तथा अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।’”

    18. मरियम मग्दलिनी यह कहती हुई शिष्यों के पास आई, “मैंने प्रभु को देखा है, और उसने मुझे ये बातें बताई हैं।” शिष्यों को दर्शन देना